What is Inflation Meaning in Hindi – मुद्रास्फीति क्या होती है? (Inflation kya hai?)
आसान शब्दों में मुद्रास्फीति का अर्थ होता है महंगाई। यानि जब वस्तुओं और सेवाओं (goods & services) के मूल्यों में वृद्धि होती है और मांग और आपूर्ति में संतुलन नहीं बन पाता है। मूल्यों में वृद्धि की इस स्तिथि को मुद्रास्फीति कहते है।
उदहारण के लिए (Example)
मान लीजिये आप किस दुकान पर कुछ सामन या चावल खरीदने लिए गए और वहाँ पर पहले से ही 20 लोग खड़े है और हर एक व्यक्ति को 10 kg चावल चाहिए पर दुकानदार के पास सिर्फ 100 kg चावल ही है।
तो चावल की मांग बढ़ जाने के कारण उसकी उपलब्धता में कमी आ जाएगी और इसी कारण उसके मूल्य में वृद्धि होने से महंगाई बढ़ जाएगी।
जब वस्तुओं और सेवाओं की मांग और आपूर्ति में असंतुलन के कारण मूल्यों में वृद्धि होती है, मांग-जनित मुद्रास्फीति कहलाती हैं। इसमें भी 2 परिस्तिथियाँ होती है।
इस प्रकार से या तो मांग बढ़ जाये या आपूर्ति काम हो जाए दोनों ही परिस्तिथियों में मूल्यों में वृद्धि होगी और मुद्रास्फीति बढ़ेगी।
जब उत्पादों के निर्माण (भूमि, पूंजी, श्रम, कच्चा माल आदि) की लागत या उत्पादन मूल्य बढ़ जाये, इसके करण जो महंगाई या मुद्रास्फीति होती है उसे लागत-जनित मुद्रास्फीति कहते है।
उत्पादन मूल्यों में वृद्धि के कई कारण हो सकते है जैसे: कच्चे तेल के मूल्यों का बढ़ना, मजदूरों की मजदूरी की कीमतों का बढ़ना, बिजली की दरों में वृद्धि इत्यादि।
इस प्रकार की महंगाई या मुद्रास्फीति की नियंत्रित करने के लिए सरकार ने कई प्रकार के टैक्स की दरों में छूट दी है।
जब उत्पादन में बिना वृद्धि किये ,मुद्रा की आपूर्ति को बड़ा दिया जाता है, तो उस स्तिथि में अर्थव्यस्था में और जनता के पास जयादा पैसा होता है, जबकि उत्पादन पहले जितना ही रहता है।
ऐसी अवस्था में लोगों के पास धन अधिक य कम होने के कारण वस्तुयें या सेवाएं अधिक लेना कहते है।
जिससे वस्तओं की मांग बढ़ती है। वहीं दूसरी ओर उत्पादन सीमित रहे के कारन आपूर्ति में नहीं बढ़ती है, जिससे मुद्रास्फीति या महंगाई में बढ़ोतरी होती है।
मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के निम्न उपाय है।
मांग-जनित मुद्रास्फीति को नियंत्रित, आपूर्ति या उत्पादन में वृद्धि करके किया जा सकता है अर्थात वस्तुओँ की आपूर्ति में कमी आना भी महंगाई का कारण है।
तो ऐसी परिस्तिथि में सरकार उन वस्तओं के उत्पादन को बढ़ा सकती है या उनका बाहर से आयात करके मुद्रास्फीति को नियंत्रित करती है।
हालांकि वस्तओं का बाहर से आयात करना कम समय तक ही कारगार रहता है।
इसलिए सरकार के लिए जिन वस्तुओँ का आयात हो रहा है उनका उत्पादन देश में ही करने एक सही विकल्प मानती है।
इस उपाय के अंतर्गत सर्कार उत्पादों पर लगने वाले करों की दरों में कमी करती है जिसके उनके मूल्य में कमी आती है। इसके द्वारा लागत-जनित मुद्रास्फीति की कम किया जाता है।
इसके अलावा विकसित तकनीक, सही परिवहन व्यवस्था आदि के द्वारा भी वस्तओं के मूल्यों में कमी लायी जा सकती है। भारत सरकार द्वारा इसी तारक के प्रयास को 2003 में प्रयोग में लाया गया था, जब कच्चे माल और इस्पात की कीमतों में थी।
इसके उपाय के अंतर्गत भारतीय रिजर्व बैंक (RBI), मौद्रिक नीति में परिवर्तन करती है, जिससे अर्थवय्वस्था में मुद्रा का प्रवाह काम हो जाता है।
इस प्रक्रिया के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) कई दरों में वृद्धि करती है, जैसे CRR कैश रिज़र्व रेश्यो (Cash Reserve Ratio), SLR वैधानिक तरलता अनुपात (Statutory liquidity ratio), बैंक दर, रेपो रेट (repo rate). इससे जनता को बैंक से लोन लेना काफी महँगा पढ़ा है।
इसी कारण जब लोगों के पास पैसा काम होने लगता है तो वे चीज़ों को कम खरीदने लगते है अर्थात चीज़ों की खरीदारी कम होने लगती है।
जिसे वस्तओं की मांग बाज़ार में घट जाती है। मनः के घट जाने से वस्तओं की खरीदारी में कमी आती है और कंपनिया आपने उत्पादों के मूल्यों को काम कर देती है।
जिससे जनता उन उत्पादों या चीज़ों को आसानी से खरीद सकती है।
जिसके परिणामस्वरूप उत्पादों या चीज़ों की कीमतों में कमी आती है और मुद्रास्फीति नियंतरण में आ जाती है।
यह स्तिथि तब उतनी कारगर सिद्ध नहीं होती जब महंगाई में वृद्धि, रोज़मर्रा यानि (जो चीज़ें हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा है) की चीज़ों के मूल्यों में वृद्धि के कारण हो रही हो।
क्योंकी इन चीज़ों को खरीदने के लिए आम जनता बैंक पर निर्भर नहीं करती।
लेकिन यदि लोहा, इस्पात, सीमेंट आदि की कीमतों में वृद्धि के कारण महंगाई बढ़ रही है तो यह उपाय काफी कारगर सिद्ध होता है।
क्योंकी जिन क्षत्रों में इन उत्पादों का उपयोग होता है उनका सीधा सम्बन्ध बैंक से होता है क्योंकि इन क्षत्रों में बैंक लोन देता है।
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